Paper Code 103) D.Ed. (VI) Unit 1: Expanded Core Curriculum 1.1 Concept of expanded core curriculuam जमा/विस्तारित पाठ्यक्रम की अवधारणा
1.1 Unit 1: Expanded Core Curriculum
पाठ्यक्रम
पाठ्यक्रम शब्द अंग्रेजी भाषा के Curriculum शब्द का हिन्दी रूपान्तण
है। Curriculum शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है तथा Curriculum
शब्द लैटिन भाषा के शब्द Currer (क्यूरेर) से बना है जिसका अर्थ है,
दौड़ का मैदान।
दूसरे शब्दों में Curriculum वह क्रम है जिसे किसी व्यक्ति
को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है।
मुनरो के अनुसार
“पाठ्यक्रम में वे सब क्रियाएं सम्मिलित हैं, जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की
परिकल्पना के लिए विकलांगो में उपयोग करते हैं।”
अतः पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षण जीवन
के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। जिसके आधार पर शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है| तथा वह नवीन ज्ञान
एवं अनुभवों को प्राप्त करता है।
1.1 Concept of expanded core curriculuam
जमा/विस्तारित पाठ्यक्रम की अवधारणा
जमा पाठ्यक्रम दृष्टिबाधित बालकों के लिए कोई अतिरिक्त
पाठ्यक्रम नहीं है, अपितु दृष्टिबाधा के कारण दृष्टिबाधित बालकों में जो कमी आई है
उसे पूरा करने के लिए जिस पाठ्यक्रम की आवश्यक्ता होती है उसे जमा पाठ्यक्रम कहते हैं।
दृष्टिबाधित लोगों के लिए यह एक विशिष्ट कौशल होता
है| जिसकी आवश्यक्ता दृष्टिवान व्यक्तियों को नहीं पड़ती है। यह कौशल दृष्टिबाधित व्यक्तियों
को वह साधन एवं मार्ग दिखाता है, जिसके द्वारा वे उन समस्त कौशलों को विकसित कर सकते
हैं| जो दृष्टिबाधा के कारण सम्भव नहीं होता है।
जमा पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दृष्तिबाधितों को
समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है।
जमा पाठ्यक्रम के घटक
1. ब्रेल पढ़ना और लिखना। (Braille Reading
& Writing)
2. अनुस्थिति ज्ञान एवं चलिष्णुता। (Orientation &
Mobility)
3. दैनिक जीवन कौशल। (Daily Living Skills)
4. ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण। (Sensory Training)
5. विशेष उपकरणों के प्रयोग जैसे, अबेकस, टेलरफ्रेम इत्यादि।
(Use of Special Equipment like Abacus, Taylor Frame etc.)
6. सामाजिक कौशलों
का विकास। (Development of Social)
दृष्टिबाधितों के लिए पाठ्यक्रम निर्माण या प्रस्तुतिकरण
के सिद्धान्त
यह पाठ्यक्रम दृष्टिवान बालकों की आवश्यक्ताओं को
ध्यान में रखते हुए बनाए जाते हैं, इसमें अनेक ऐसे तत्व या अंश होते हैं, जो दृष्टिबाधितों को शैक्षिक अनुभव देने में बाधक बन जाते हैं।
पाठ्यक्रम में ऐसे बाधक तत्वों या अंशों को दृष्टिबाधितों
के लिए उपियुक्त बनाने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यक्ता
पड़ती है। इसके कुछ नियम है, इन नियमों को दृष्टिबाधितों के लिए पाठ्यक्रम निर्माण या प्रस्तुतिकरण के सिद्धान्त
कहा जाता है-
1. द्विगुणन/ द्विगुणित (Duplication)
अनेक बार छपी हुई पाठ्य सामग्री के स्थान पर ब्रेल
अथवा दीर्घाक्षर सामग्री दृष्टिबाधित बालकों हेतु उपलब्ध नहीं होती।
इस स्थिति में अध्यापक को उस पाठ्य सामग्री को ब्रेल
या दीर्घाक्षर प्रति (Large Print) या स्वयम् बनानी पड़ती हैं या किसी अन्य व्यक्ति से बनवानी पड़ती है, इसे
द्विगुणन या द्विगुणित (Duplication) कहते हैं।
2. प्रतिस्थापन (Substitution)
प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम में दृष्टिमूलक विचारों
की भरमार होती है। इन्हें दृष्टिबाधा की सीमाओं के कारण ऐसे बालकों के लिए समझना कठिन
हो जाता है।
उनके समझने के लिए प्रतिस्थापन की सहायता लेनी पड़ती
है। इसका अभिप्राय यह है, कि पाठ्यक्रम में उपलब्ध पाठ के स्थान पर दृष्टिबाधित बालकों
के लिए किसी अन्य पाठ की व्यवस्था करना, जो यथा सम्भव पाठ्यक्रम में सम्मिलित पाठ जैसा
हो तथा उसके जैसे अनुभव प्रदान कर सके।
3. रूपान्तरण (Modification)
पाठ में छोटे-छोटे संसोधन करना ही रूपान्तरण कहलाता
है। जैसे—पाठ में अक्सर लिखा रहता है, कि ऊपर दिये गए चित्र को देख कर बताओ, कि उसमें
पशु या व्यक्ति क्या कर रहे हैं, ब्रेल पुस्तक में इसे शामिल करना लगभग असम्भव है।
अतः दृष्टिबाधित बालकों के लिए यह भ्रामक है। इसका
संसोधन किया जा सकता है चित्र का वर्णन् भी
किया जा सकता है।
4. हटाना (Omission)
जब प्रतिस्थापन, रूपान्तरण या द्विगुणित में से किसी
भी नियम का प्रयोग सम्भव न हो, तो उस पाठ को छोड़ देना ही हटाना कहलाता है।
प्राथमिक स्तर पर कभी-कभी इसकी आवश्यकता पड़ जाती है।
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