Unit 2: Management of Slow Learning Visually Impaired Children
2.1 Meaning and characteristics
2.1 अर्थ और
विशेषताए
धीमी गति से सीखने वाले बालक प्रत्येक कक्षा
में देखने को मिलते हैं।
वैसे तो इन बच्चों को विशेष आवश्यक्ता वाले बालकों की श्रेणी में
नहीं रखा जाता, फिर भी ऐसे
बच्चों की आवश्यक्ताओं को समझते हुए उन्हें कक्षा स्तर पर लाना अध्यापकों के लिए
एक चुनौती है। इनमें सीखने की योग्यता होने के बावजूद ये अपनी आयु के बच्चों की
अपेक्षा कम सीख पाते हैं किसी भी नये प्रत्यय को सीखने के लिए इन्हें ज्यादा समय
की आवश्यक्ता/जरुरत पड़ती है तथा कई बार ज्यादा साधनों की भी आवश्यक्ता पड़ती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इन
बच्चों की बुद्धि-लब्धि 70 से 90 औसत के बीच आती है।
1. किसी कार्य को पूरा करने में औसत दृष्टिबाधित
बच्चों के मुकाबले ज्यादा समय लगना।
2. व्यक्तिगत
ध्यान देने के बावजूद भी छात्र का कक्षा के कार्यों
में अच्छा परिणाम न लाना।
3. इनमें विकास की देरी, विकलांगता या बीमारी का इतिहास जैसे, दौरा
पड़ना आदि का होना।
4. बच्चे में शब्द भण्डार की कमी होना या बोलने में
चतुर होना लेकिन लिखने में कमजोर होना।
5. उसे विभिन्न बातों को बार-बार बताना।
6. अतिशीघ्र उत्तेजित हो जाना, भावात्मक रूप से उग्र हो जाना या असमायोजित
आचरण करना।
7. अपने
लिए कोई सार्थक
लक्ष्य
निर्धारित
न कर पाना और समय के प्रबंधन में सहयोग देने में
कठिनाई होना।
परिभाषा
भट्ट के अनुसार-
“पिछड़ा हुआ बालक वह है, जो स्कूली जीवन में अपनी आयु स्तर की कक्षा से एक श्रेणी नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ है।”
सारांश
कई बार कक्षा में अच्छा प्रबन्धन न कर पाने से
छात्र धीमी गति से सीखने वाले बच्चों में (वर्ग में) नहीं आता हैं| जब तक मानवीकृत
परीक्षण के परिणामों का अच्छी तरह से अध्ययन न किया जाये तब तक किसी को धीमी गति
से सीखनेवाला नहीं कहा जा सकता| निर्णय लेते हुए दृष्टि बाधा के प्रत्यक्ष
प्रभावों का अवलोकन जरुरी हैं|
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