Paper Code-109) 3.3 Mental retardation – concept, educational implications and teaching strategies D.Ed. (V.I.)
3.3 Mental retardation – concept, educational implications
and
teaching strategies
मानसिक मन्दता: अवधारणा, समस्याएँ और शैक्षिक
रणनीतियाँ
मानसिक मन्दता का
सामान्य अर्थ है कि ‘औसत से कम मानसिक योग्यता’| मानसिक मंद बच्चों की बुद्धिलब्धि
सामान्य से कम होती है इनका मानसिक विकास धीमा होता है और ये अपने हम उम्र बच्चों
की तुलना में बौद्धिक रूप से पिछड़ जाते हैं अनेक शोधो से यह ज्ञात हुआ है कि मानसिक
विमंदित बच्चों में दृष्टिबाधा की संभावना अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक होती है|
परिभाषा
Mental Defficiency
Act (1987) के
अनुसार
“मानसिक मन्दता का
अर्थ है कि मस्तिष्क की बाधित अथवा अपूर्ण विकास को स्थिति जो कि 18 वर्ष की आयु
के पूर्व होती है| चाहे यह आनुवांशिक कारणों से उत्पन्न हुई हो अथवा किसी रोग या
चोट के कारण|”
P.W.D. के अनुसार
“ऐसा व्यक्ति जिसका
चित्त अवरुद्ध व अपूर्ण विकास को अवस्था में है तथा विशेष रूप से बुद्धि को
असमानता द्वारा परिलक्षित हो तो इसे मानसिक मन्दता कहा जाएगा|”
दृष्टिबाधा तथा मानसिक विमंदाता के लक्षण
अधिगम सम्बन्धी
लक्षण
दृष्टिबाधा के साथ
मानसिक मन्दता होने से कोई भी नया कौशल सीखने में अत्याधिक समय लगता है एवं कठिनाई
होती है तथा तथा दूसरों से कम संख्या में कौशल सीख पाते हैं अधिगम की महत्वपूर्ण
समस्याएँ निम्नलिखित है—
1. उपयुक्त उद्दीपक तथा संकेत के प्रति ध्यान देने में कमी|
2. दूसरों का अनुकरण करने में समस्या|
3. पहले सीखी हुई दक्षताओं तथा सूचनाओं को स्मरण करने मे कठिनाई|
4. अलग-अलग दक्षताओं को एक अर्थ पूर्ण समय में बदलने में कठिनाई|
5. स्वयं के व्यवहार को व्यवस्थित करने में कठिनाई|
व्यक्तिक सामाजिक लक्षण
ऐसे बच्चे आमतौर पर
दूसरो से तब तक अलग रहते हैं जब तक कि उन्हें दूसरों के साथ अन्तः क्रिया करना न
सिखाया जाये| इनमें प्रायः पुनरावृत्ति व्यवहार, स्वयं को आघात पहुँचाना, आक्रोशित
व्यवहार देखने को मिलते हैं|
दृष्टीबाधित मानसिक मंद बालकों हेतु शैक्षिक
नीतियाँ
इन बच्चों के लिए किसी भी कार्यक्रम को लागू
करते समय कुछ विशेष बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए—
1. सभी बच्चे सीख सकते है
कोई भी बच्चा अपनी
विकलांगता के बावजूद भी सीख सकता है| उसे सीखने का उत्तरदायित्व अध्यापक तथा
शैक्षिक कार्यक्रमों पर है|
2. बच्चे को उसके स्तर के अनुसार सामग्री
प्रदान की जाये
इन बच्चों को
सिखाते समय बच्चे के मानसिक स्तर के अनुसार शिक्षण सामग्री प्रदान की जानी चाहिए|
जो बालकों को समझने में आसान रहे और सीखने के लिए प्रोत्साहित करे|
3. सरल कार्यों में उपक्रियाएँ शामिल करना
अति सरल क्रियाएँ
जैसे-दैनिक जीवन कौशल सीखने के लिए इन्हें उपक्रियाओं में बाँट देना चाहिए|
शिक्षणीय मानसिक मंद बच्चों को शिक्षा प्रदान करते समय ऐसी अनेक उपक्रियाएँ करायी
जानी चाहिए|
4. पुनर्बलन प्रदान करना
यह पुनर्बलन प्रशंसा
या पुरस्कार के रूप में हो सकता है| किसी कार्य को स्वयं कर लेने पर अवश्य
पुनर्बलन दिया जाये|
5. हर बच्चा एक-दूसरे से भिन्न है
बच्चों में दृष्टिबाधा
तथा मानसिक मन्दता की मात्रा अलग-अलग हो सकती है इसलिए बच्चों की व्यक्तिगत
विभिन्नताओं को धयान में रखते हुए किसी कार्य को कराते समय उसके पदों में अंतर
रखना आवश्यक होता है|
6. कार्य सिखाने से पहले मूल्यांकन
कुछ भी सिखाने से पहले
बच्चे के वर्तमान स्तर को जानना, उसकी क्षमताओं तथा सीमाओं को समझना अत्यन्त
आवश्यक होता है|
मानसिक मंदता से कार्य
निष्पादन प्रभावित होता है| दृष्टिबाधा होने से यह समस्या और जटिल हो जाती है
क्योंकि दृष्टिबाधा से सूचना प्राप्त करने में सीमाएं आ जाती हैं| अतः दृष्टिवान
मानसिक मंद बच्चों को अपेक्षा इन बच्चों को अपनी शेष इन्द्रियों पर अधिक निर्भर
रहना पड़ता है|
इन बच्चों को किसी भी
कौशल को सीखने के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीकी ‘Instructional
Prompts’ है|
ये Prompts या सहायता के प्रकार तथा स्तर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं जैसे—
1. वातावरणीय संकेत
छुट्टी की घंटी संकेत
देती है, अब घर जाना है|
2. शारीरिक मुद्रा संकेत
अंगुली से इशारा करना
सम्मति सूचक सिर हिलाना|
3. मौखिक संकेत (अप्रत्यक्ष)
एक शब्द अथवा वाक्यांश से इशारा करना|
4. मौखिक संकेत (प्रत्यक्ष)
बच्चों को सीधा बोलकर
संकेत देना|
5. स्पर्शीय संकेत
वस्तुओं, प्रतिक,
ब्रेल में लिखे शब्द|
6. मॉडल संकेत
अनुकरण के लिए
प्रदर्शन करना|
7. आंशिक दैहिक संकेत
कोहनी या बाँहों पर स्पर्श
करके इशारा करना|
8. पूर्ण दैहिक संकेत
पुरे कार्य में पकड़ कर
इशारा करना|
9. क्रमिक मार्गदर्शन
यह एक अन्य रणनीति है
जिसमे पहले अधिक मात्रा में सहायता से क्रमशः कम संकेत की ओर बढ़ा जाता है|
एक अन्य तकनीक
‘Shoping’ का प्रयोग भी दृष्टिबाधित मानसिक मंद बच्चों के लिए किया जाता है| इस
विधि में लक्ष्य तक पहुँचने के लिए बच्चों के हर सही प्रयास को पुनर्बलन दिया जाता
है|
Chaining
इसमे सबसे पहले सिखायी
जाने वाली दक्षता को छोटे छोटे भागों में बाँटा जाता है और एक बार में एक पद
सिखाया जाता है|
सिखाते समय अध्यापको द्वारा ध्यान देने योग्य
बातें
1. सही कार्य का पुनर्बलन तुरंत प्रदान किया जाये|
2. उपयुक्त पुनर्बलन चुनने के लिए अध्यापक बच्चे की पसन्द-नापसन्द पर
ध्यान दें|
3. जब बच्चा किसी दक्षता या कौशल को सीख ले तो उसका अभ्यास करने के
लिए अलग-अलग परिस्थितियों का निर्माण किया जाना चाहिए|
4. दक्षताओं का सामान्यीकरण किया जाये जिससे बालक उन्हें याद रख सके|
5. दक्षताओं को चुनते हुए अध्यापक आंशिक भागीदारी के सिद्धांत को
ध्यान में रखे|
6. पाठ्यक्रम अनुकूलन करके शिक्षित करना|
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