Part 4 Paper Code-110 Hindi State Language D.Ed (V.I.) भाषा शिक्षण प्रक्रिया एवं भाषा कौशल और भाषा शिक्षण के सामान्य सिद्धान्त
भाषा शिक्षण प्रक्रिया एवं
भाषा कौशल
सामान्यतः शिक्षण का अर्थ ज्ञान प्रदान करना, जानकारी देना एवं कुशलता विकसित करना है। भाषा शिक्षण से हमारा अभिप्राय उस
विशिष्ट अवस्था से है, जिसके द्वारा भाषाई कुशलता का विकास हो सके।
सामान्यतः भाषा कौशल चार प्रकार के होते हैं—
1. श्रवण
2. बोलना
3. पठन
4. लेखन।
भाषा शिक्षण प्रक्रिया के
अन्तर्गत इन्ही चार कौशलों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
भाषा अधिगम और भाषा
शिक्षण
भाषा अधिगम और भाषा शिक्षण परस्पर सम्बन्धित
प्रक्रियाये हैं। प्रभावी अधिगम के लिये प्रभावी शिक्षण आवश्यक है, क्योकि भाषा शिक्षण और अधिगम
दोनों का सम्बन्ध शिक्षार्थी अर्थात्, सीखने वाले से है। शिक्षार्थी की आयु, योग्यता, स्तर एवं अन्य वैयक्तिक विशेषताएं शिक्षण प्रक्रिया को
प्रभावित करती हैं। सभी बच्चों में व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। अतः सभी में
भाषा सीखने की गति एक समान नहीं होती है।
शिक्षण प्रक्रिया के चार प्रमुख घटक होते हैं, जो इस प्रकार हैं—
1. शिक्षार्थी
2. शिक्षक
3. पाठ्य सामग्री
4. शिक्षण विधि
इन चारों घटकों में से
किसी भी एक घटक का लोप होने से शिक्षण प्रक्रिया बाधित हो जाती है।
भाषा शिक्षण के सामान्य
सिद्धान्त
एक शिक्षक को कक्षा में पढ़ाते समय विशेष तौर
पर भाषा शिक्षण करते समय कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए, जिससे उनका शिक्षण
प्रभावी बन सके। इन सिद्धान्तों को ही भाषा शिक्षण सिद्धान्त कहा जाता है। ये इस
प्रकार हैं—
1. रुचि जागृति करने का सिद्धान्त
बालक के लिये शिक्षण उस
समय तक लाभदायक नहीं होगा, जब तक उसमें सीखने के प्रति रुचि जागृत न हो जाए। अतः यह
आवश्यक है, कि बालक में शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न की जाये| जिसके
लिये कई माध्यमों जैसे--कहानी, कविता एवं नाटक आदि का प्रयोग
किया जा सकता है। यह प्रेरण दायी होते हैं पूर्व समय में रूचि जागृत करने के लिए
दण्ड एवं अनुशासन का प्रयोग किया जाता था| जो सर्वथा अनुचित है|
2. प्रेरणा का सिद्धान्त
रुचि और प्रेरणा के
सिद्धान्त को सामान्यतः एक सिद्धान्त ही माना जा सकता है, क्योंकि रुचि जागृति
होने पर ही अधिगम की प्रेरणा होती है और प्रेरणा से ही बालक में रुचि का विकास
होता है। संक्षेप में रुचि का सिद्धान्त और प्रेरणा का सिद्धान्त
एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं।
3. क्रिया द्वारा सीखने का सिद्धान्त
क्रिया द्वारा अधिगम का सिद्धान्त
अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस सिद्धान्त के माध्यम से सीखने में उसी समय आनन्द आता है, जब वह क्रिया को स्वयं अपने द्वारा करके सीखता है। इस सिद्धान्त का अर्थ यह है
कि जो कुछ भी बालक को सिखाया जाए वह उसे निष्क्रिय श्रोता या मूक दर्शक बनकर न
सीखे बल्कि उसमें उसकी सक्रीय भागीदारी सुनिश्चित की जायें|
4. जीवन से जोड़ने का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार किसी
भी विषय को पढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिये, कि बालक के आगे आने वाले जीवन व परिस्थिति से सम्बन्धित
है या नहीं| इस सिद्धान्त में इस बात का ध्यान रखा गया है, कि जो ज्ञान बालक
विद्यालय में प्राप्त कर रहा है, उसका प्रयोग वह विद्यालय के बाहर अपने भावी
जीवन में भी कर सके।
1. शिक्षण सदैव उद्देश्य पूर्ण होना चाहिये।
2. शिक्षण पाठ्य सामग्री का चुनाव इस प्रकार करें
कि वह शिक्षण के सभी उद्देश्यों को पूरा कर सके।
3. शिक्षण का एक सिद्धान्त विभाजन का सिद्धान्त
भी है, जिसके अनुसार पाठ्यक्रम को विभागों एवं इकाईयों में विभाजित
कर के अध्यापन कराया जाता है।
4. पुनरावृत्ति से बालक का अधिगम दृढ़ होता है
साथ ही उसमें स्पष्टता भी आती है और इसे पुनरावृत्ति का सिद्धान्त कहते हैं।
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