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Paper Code 101) (COMMON PAPER V.I., H.I., M.R.) Unit 1: Understanding Disability 1.1 Historical development in understanding disability

Paper Code 101 

विकलांगता के लिए परिचय

Interoducation of Handicap

विकलांगता व्यक्तियों की शारीरिक और भौतिक स्थितियों के साथ-साथ उससे सम्बन्धित क्रियाकलापों से उत्पन्न एक प्रकार को सामाजिक स्वरुपता है जिसका आकलन व्यक्तिय के मनो सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है| जो स्थान समय परिस्थिति तथा सामाजिक भूमिका से सम्बन्धित हो सकती है| अर्थात विकलांगता व्यक्ति की वह दिशा है जो क्षति एवं मानसिक सम्बन्धित भूमिका को सामान्य व्यक्ति की तुलना में निर्वाह करने में बाधक होता है, अतः विकलांगता का सामाजिक स्वरूप वातावरण को परिलक्षित रखता है|

परिभाषा

व्यक्ति में उम्र, लिंग, सामाजिक, सांस्कृतिक कारको में क्षति एवं अक्षमता के कारण जो नुकसान या पिछड़ापन हो जाता है उसे विकलांगता कहते हैं| इसमें व्यक्ति को सामाजिक स्थिति एवं शारीरिक क्रियाएँ बाधित हो जाती है|

उदाहरण:

       काम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति सीढ़ी नहीं चढ़ पाता है|

बीमारी----क्षति----अक्षमता----विकलांग

       परन्तु जरुरी नहीं है कि बीमारियाँ क्षति और अक्षमता के बाद भी विकलांगता जाती है| उसमें बिमारी या अक्षमता जाए ऐसा जरुरी नहीं| जैसे: किसी व्यक्ति का दुर्घटना में पैर या हाथ कट जाए तो उसके अंग को क्षति पहुंचेगी और तुरंत विकलांग हो जाएगा| यदि उसे गहरी चोट लगती है और क्षति पहुंचती है तो अक्षमता आती है और फिर वह विकलांग हो जाता है|

निष्कर्ष:

       क्षति के कारण यदि व्यक्ति समाज में रहकर सामान्य की भांति कार्य कर पाए तो विकलांगता कहलाती है|

विकलांगता के स्तर

1. यह शारीरिक स्तर (Organ Lable) की होती है|

2. यह कार्य स्तर (Function Lable) पर होता है|

3. सामाजिक स्तर (Social Lable) का होता है|

Kind of Disability

1. Physical

i) Hearing Impairment

ii) Visually Impairment

iii) Loco Moter

iv) Aurtho Padic

2. Mental

i) Mental Retarditation

ii) Mental Inless

iii) Learing Diasbility

 

Unit 1: Understanding Disability

1.1 Historical development in understanding disability

विकलांगता एक ऐसी स्थिति है जिसे कोई भी व्यक्ति स्वेच्छ से नहीं चाहता| प्राप्त जानकारी इतिहासों के अनुसार प्राचीन समय में मिस्र के सभी देशों में विकलांगजनों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी| इन बच्चों को जन्म के समय ही मार दिया जाता था या इन्हें राक्षस, बुरी आत्मा या पूर्व जन्म का पाप कहा जाता था| इनको हँसी का पात्र समझकर कोड़े बरसाए जाते थे| इनको और इनके परिवार को भी बहिष्कृत कर दिया जाता है| नगर तथा गाँव में इनके प्रवेश को अनुमति नहीं दी जाती थी और ही ये सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों में भाग ले सकते थे| ये गाँव के बने कुएँ पोखरे तालाब आदि से जल लेने की अनुमति नहीं थी| कुल मिलाकर इनकी स्थिति अत्यन्त ही दयनीय थी|

       धीरे-धीरे समय परिवर्तन के पश्चात् लोगों के दृष्टिकोण में अंतर आया, जिसमे संत, महात्मा, ऋषि, मुनि और धर्मबलियों ने विशेष योगदान दिया| इनके अनुसार-विकलांगजनो को मुख्य अंग मानते हुए कार्य करना प्रारम्भ किया| भारतीय इतिहास में विकलांगता को जड़े अत्यन्त प्राचीन हैं और इसमें सुधार के प्रयास भी प्राचीन समय से किया जा रहा है| लगभग 500 वर्ष पूर्व राजा कौटिल्य ने विकलांगो के अपमान जंक शब्दों के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाया और इनकी रक्षा के लिए विशेष गुप्तचर रखे| इसी तरह इस वर्ष में धृताराष्ट्र का वर्णन मिलता है| जिन्होंने राजा बननेके उपरांत विकलांग जनों के भलाई के लिए कार्य किए| विकलांगता के क्षेत्र में क्रमबद्ध विकास को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत लिख सकते है

सोलहवीं शताब्दी:-

       सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ग्रेगरी प्रथम ने एक निर्देश जारी किया| उन्होंने अपने शिष्यों को विकलांगो को सहायता करने का आदेश दिया|

सत्रहवीं शताब्दी

       सत्रहवीं शताब्दी में विकलांगजनों की दीक्षा एवं देख-रेख की व्यवस्था की जाने लगी| दर्शनशास्त्री Renecleskai ने सीखने की सिद्धांत की नींव रखी|

       इसी काल में Pedrapones D. Lee ने नामक एक Spanised Scientist ने बधिर व्यक्तियों को लिखना, पढ़ना, बोलना जैसे कार्यों में सहभागिता निभाई| इसी काल में जो सूरदास जन्मजात दृष्टिहीन थे भगवान श्रीकृष्ण के गुणों को कविता, दोहा आदि के रूप में लिखा|

       इस प्रकार इस काल में विकलांगों की स्थितियों में सुधार होना प्रारम्भ हो गया|

अट्ठारहवीं शताब्दी:-

       इस समय के युग को शैक्षिक पुर्नउत्थान की अवस्था कहते हैं जो सामाजिक पुर्नउत्थान के परिणाम स्वरूप सामने आती हैं|

इस काल में वाणी तथा भाषा सम्बन्धी विकास पेरिस में अम्बे चाल्स एवं समुआलेस आर्बे ने हस्तचलित संकेतों को एक पद्धति विकसित की| इन्हें सांकेतिक पद्धति का जनक भी कहा जाता है|

इसके उपरांत सन् 1748 . में डॉक्टर डिड रिड ने दृष्टि अक्षम व्यक्ति को शिक्षा का आरम्भ किया| सन् 1784 में सर वी. हार्बे ने पेरिस में प्रथम अन्ध विद्यालय खोला|

उन्नीसवीं शताब्दी

       उन्नीसवीं शताब्दी विकलांगजनों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण रही| पहली बार क्रमबद्ध तरीकों द्वारा विकलांग बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास किये गए| इसी शताब्दी में विकलांगो की शिक्षा के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति लुई ब्रेल (सन् 1809) का जन्म हुआ| सन् 1826 . में विशेष शिक्षा का शुभारम्भ राजाकाली शंकर कोसाल ने किया| सन् 1841 . में मंद बुद्धि बालकों के लिए आश्रम खोले गये| इसके साथ-साथ कृत्रिम अंग निर्माण केन्द्रों की स्थापना की गई| केंद्र पूना महाराष्ट्र में स्थापित किया| सन् 1870 . मेंफैक्टर्स एक्टनामक शिक्षा नीति बनी| जिसमे ब्रिटेन की शिक्षा नीति के प्रति जागरूक हुए| 19वीं शताब्दी में विकलांगजनों के लिए महत्वपूर्ण कार्य करने वाले एले. जेंडर, ग्राहम बेल, मारिया मान्टेसरी (इटली) आदि का नाम प्रमुख है| भारत में सन् 1887 . में श्रीमती एनी सार्क ने अमृतसर में प्रथम अन्ध विद्यालय की स्थापना की|

बीसवीं शताब्दी

इस शताब्दी के प्रारंभ में मानसिक तौर पर पिछड़े बच्चों के लिए विद्यालय खोले गए परंतु यह प्रयास ज्यादा सफल हो सका कुछ समय पश्चात श्रवण बाधित तथा दृष्टिबाधित बच्चों के लिए दिवसीय विद्यालय खोले गए| इस शताब्दी में आंशिक निःशक्त वाले बच्चों के लिए तो विद्यालय थे किंतु पुर्णतः निःशक्त बच्चों के लिए या सुविधा नहीं थी| सन् 1930 ईस्वी में लंदन कमीशन और इस क्षेत्र में कार्य करने वाले कुछ उत्तरदायी संस्थाओं ने मिलकर मंदबुद्धि बच्चों के लिए प्रावधान बनाएं और उनकी शिक्षा-दीक्षा प्रारंभ की सन् 1913 ईस्वी में भारत के कई राज्यों में दृष्टिहीन या मूक-बधिर बच्चों के लिए विद्यालय खोले गए सन् 1918 ईस्वी में रॉयल कमीशन पारित हुआ जो मेंटल डेफिशियेंसी Mental Deficiency बिल के नाम से जाना जाता है| भारत में ही 1929 ईस्वी में डॉक्टर कुजित वर्ग (स्कूल फॉर ब्लाइंड) के माध्यम से (मद्राश एसोसिएसन् फॉर ब्लाइंड) विद्यालय की स्थापना की| लेडी नोइस (Lady Nois) राजकीय विद्यालय की स्थापना सन् 1931 ईस्वी में दिल्ली में की गई| सन् 1934 ईस्वी में रांची के मनोचिकित्सा केंद्र की स्थापना की गई| सन् 1936 ईस्वी में मद्रास में विकलांग और 1939 ईस्वी में मानसिक अस्पताल की स्थापना की गई सन्| 1950 ईस्वी में अक्षमता को अलग से परिभाषित किया गया और सन् 1954 ईस्वी में मुंबई के एक नियमित विद्यालय में पहली बार विशेष शिक्षा प्रारंभ की गई| सन् 1965 से 56 ईस्वी में भारत में एक एजुकेशन कमिशन की रिपोर्ट के अनुसार विकलांग बच्चों को जहां तक संभव हो सामान्य विद्यालय में समायोजन पर बल दिया गया| सन् 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेष विद्यालय एवं समिति शिक्षा की बात कही गई है| 1973 में लुई ब्रेल अनुसंधान केंद्र की स्थापना की| सन् 1985 में भारत सरकार ने भारतीय पुनर्वास संस्था का गठन किया| सन् 1986 की नई शिक्षा नीति में विकलांग जनों को मुख्य रूप में शामिल किया|

सन् 1987 ईस्वी में भारत में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम पारित हुआ| सन् 1995 ईस्वी में भारत नई निःशक्त व्यक्ति अधिनियम (PWD Act) पारित हुआ| जो विकलांगता के क्षेत्र में अब तक का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास रहा सन् 1999 में राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (National Trust Act) पारित हुआ|

जिसमें चार प्रकार की विकलांगताओं को शामिल किया गया है

1. मानसिक मन्दता

2. प्रमाष्तिस्कीय पक्षाघात

3. स्वलीनता

4. बहु विकलांगता

       इस प्रकार से सरकारी एवं गैर सरकारी तौर पर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकलांग जनों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए| जिसमें विकलांग जनों को पुनर्वास सेवा के साथ-साथ सामान्य जीवन प्रदान करते हुए समाज की मुख्य धारा में जोड़ते हुए कार्य किया| इसके साथ ही विकलांग जनों को बाधामुक्त वातावरण उपलब्ध कराने हेतु प्रयास किए| समयानुसार लोगों के दृष्टिकोण, व्यवहार, रूचि आदि में परिवर्तन भी आया| आधुनिक तकनीकी ने इन्हें महत्वपूर्ण योगदान दिया|

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