Paper Code 102
1.2 Anatomy
and physiology of human eye
नेत्र
एवं नेत्रों
की देखभाल
आंखें भगवान
की
सर्वश्रेष्ठ
उपहारों
में
से
एक
अनोखी
देना
है|
इसके
द्वारा
हम
संसार
के
सौन्दर्य
एवं
अनूठे
चमत्कारों
को
देखते
हैं
और
उनका
आनंद
उठाते
हैं|
किसी भी
सामान्य
व्यक्ति
का
लगभग
70 से 80% ज्ञान आंखो
द्वारा
ही
ग्रहण
किया
जाता
है|
प्रत्येक जीव
को
भगवान
ने
दो
आंखें
दी
है,
वैसे
देखने
के
लिए
एक
आंख
ही
पर्याप्त
है
लेकिन
दो
आंखों
के
होने
से
सामने
के
दृश्य
को
पूरी
तरह
से
यानि
तीनो
आयामों
में
देख
सकते
है|
वस्तु की
गहराई
और
स्थिति
का
ठीक
अनुमान
हमें
दो
आँखों
से
बेहतर
मिल
जाता
है|
आँख
की संरचना
आँख एक
कैमरे
के
समान
है,
जो
बाहर
के
दृश्य
को
हमारे
मस्तिष्क
तक
पहुंचाती
है|
वस्तुतः
हम
अपने
मस्तिष्क
से
ही
देखते
है,
यह
हिस्सा
हमारे
सिर
के
पिछले
भाग
में
होता
है|
इसे
Ocipital Lobe of Brain कहते है|
एक व्यस्क
आँख
का
सामान्य
व्यास
औसतन
24 मिली मीटर होता
है
उसका
अगला
हिस्सा
कुछ
उभरा
हुआ
होता
है
और
पीछे
का
हिस्सा
कुछ
चपटा
हुआ
होता
है
देखने
में
आंख
चाहे
पेचीदा सी लगती
हो
लेकिन
यदि
उसे
खोल
कर
देखें
तो
प्याज
की
तरह
उसमें
भी
परते
होती हैं
जैसे--प्याज
की
एक
परत
के
बाद
कई
परतें
होती
हैं
उसी
प्रकार
आंख
की
एक
के
बाद
तीन
परते
होती
हैं|
पहली
परत (स्क्लेरा)
सबसे बाहर
की
परत
स्क्लेरा
स्वेत
पटल
और
(पारदर्शक स्वच्छ मंडल)
कार्निया
होता
है|
स्वेत
पटल एक
ठोस
एवं
मजबूत
खोल
होता
है|
यह
आंख
को
आकार
देता
है
यह
प्रायः
5/6 भाग को ढकता
है
कॉर्निया
और
शेष
1/6 भाग पारदर्शक स्वच्छ
मंडल
होता
है
जहां
स्वेत
पटल
और
पारदर्शक
स्वच्छ
मंडल
मिलते
हैं,
जहां
कॉर्निया
और
स्क्लेरा
का
मिलन
होता
है
उसे
Limbus कहते
हैं|
श्वेत
पटल
कि
इस
दृष्टिगत
विजिवल
भाग
पर
एक
बाहरी
झिल्ली
चढ़ी
रहती
है
आंख
के
अगले
भाग
से
होते
हुए
यह
दोनों
पलकों
के
भीतरी
सतह
का
रूप
ले
लेती
है
इसे
हम
Conjuctive कहते
हैं|
पारदर्शक स्वच्छ
मंडल
शीशे
की
तरह
स्वच्छ
और
पारदर्शक
होता
है|
क्योंकि
इसके
नीचे
काले
रंग
के
Tissues होते हैं,
या
आगे
कई
रंग
जैसे—काले,
भूरे,
नीले,
हरे
रंग
का
दिखाई
देता
है
जैसे-जैसे
इसके
नीचे
Tissues का रंग
होता|
पारदर्शक
स्वच्छ
मंडल
स्वेत
पटल
से
उठता
हुआ
आगे
की
तरफ
से
कुछ
उभरा
हुआ
होता
है
जैसे--घड़ी
के
ऊपर
शीशा|
कार्निया का
मुख्य
कार्य
है
कि
ये
प्रकाश
की
किरणों
को
आंख
के
अंदर
पहुंचाता
है
तथा
रेटिना
के
ऊपर
किरणों
को
केंद्रित
करता
है|
कार्निया
लेंस
की
तरह
मुड़ा
होता
है,
इसकी
पावर
+40 Dayopter होती है|
आंख की
कुल
आवश्यकता
साथ
60 Dayopter होती है,
जिसमें
से
42 Dayopter सिर्फ कार्निया
प्रदान
करता
है|
दूसरी परत
दूसरी परत
स्क्लेरा
कॉर्निया
के
अंदर
यूबिया
(Ubea) है| जिसके
पीछे
से
आगे
तक
तीन
भाग
होते
हैं|
1.
क्लोराइड
(Chorid)
2.
सिलिएरी
बॉडी
(Ciliari Body)
3.
आइरिश
(Iris)
कोराइट
कोराइड
की
परत
में
रक्त
वाहिनी
और
काले
पिगमेंट
होते
हैं,
इसका
कार्य
पूरी
आंखों
को
रक्त
प्रदान
करना
है,
जो
पिगमेंट
कहलाता
है,
अनावश्यक
रोशनी
की
किरणों
को
फैलने
से
रोकता
है|
यह
चौधाने
वाले
रोशनी
लेयर
को
रोकते
हैं|
कोराइड
पूरी
स्क्लेरा
को
अंदर
से
ढ़कता
है,
सिवाय
5 मिली मीटर आगे
का|
5 मिलीमीटर सिलिएरी
बॉडी
से
ढका
होता
है,
जैसे
दूर
और
नजदीक
का
फासला
होने
से
पावर
बदल
जाती
है|
इस ग्रंथियों
से
स्वस्थ
द्रव्य
एक
एक्वस
ह्यूमर
बनता
है,
जो
वहां
तक
प्रेशर
सीमित
रखता
है|
ये
लेंस
तक
तथा
कार्निया
को
पोषण
देता
है|
यह कार्निया
तथा
लेंस
से
चारों
तरफ
की
परतों
से
360० डिग्री
तक
घिरा
होता
है|
यह
एक
छोटे
से
छिद्र
प्युपिल
से
जिसे
आंख
जिसे
आंख
की
पुतली
कहते
हैं|
कार्निया
के
पारदर्शी
होने
के
कारण
हम
पीछे
की
आयरिश
को
देख
सकते
हैं,
और
इसी
के
रंग
को
आंख
का
रंग
कहा
जाता
है|
पुतली के
पीछे
एक
गोल
पारदर्शी
से
अवतल
लेंस
होता
है,
जिसका
कार्य
स्वच्छ
मंडल
आँख
के
तारे
से
होकर
आंख
के
प्रकाश
को
पर्दे
के
पर
केंद्रित
करता
है|
इसका पावर
+18 Dayopter होता है,
जो कार्निया
से
मिलकर
+40 Dayopter बन जाती
है|
यह
लचीला
होने
के
साथ-साथ
दर
या
पास
दोनों
दूरियों
में
देखने
में
सहायक
होता
है|
लेंस
का
लचीलापन
उम्र
के
बढ़ने
के
साथ-साथ
कम
होता
है
इसलिए
पढ़ने
के
लिए
चश्मे
की
आवश्यकता
पड़ती
है|
तीसरी
परत
तीसरी परत
आंख
का
पर्दा
अर्थात
रेटिना
है,
यह
आंख
की
सबसे
महत्वपूर्ण
एवं
संवेदनशील
भाग
है
इसके
1 वर्ग इंच में
भी
छोटे
छिद्र
में
13.7 करोड़ कोशिकाएं पाई
जाती
हैं
इनमें
13 करोड़ राड्स (Rods) होते
हैं,
जो
काले
और
सफेद
में
अंतर
करती
हैं
तथा
70 लाख शंकु (Cone) होते
हैं,
जो
रंगों
की
पहचान
कराते
हैं|
एक नश
हर
शलाका
और
शंकु
से
निकलती
है,
और
फिर
सब
नशे
एक
जगह
एकत्रित
होती
हैं|
जिसे
ऑप्टिकल
नर्व
या
क्रेनियल
नर्व
कहते
हैं,
पूरा
रेटिना
देखने
का
कार्य
नहीं
करता
है,
रेटिना
का
केवल
एक
छोटा
सा
हिस्सा
ही
देखने
का
कार्य
करता
है,
जो
कि
केवल
2-3 मिली मीटर होता
है|
यहाँ
सारी
रोशनी
एकत्रित
होती
हैं
इसे
फोबिया
(Fovia) कहते हैं|
यह पर्दे का संवेदनशील भाग है, परंतु कुछ लोग जन्म से ही कलर ब्लाइंड होते हैं, व एक या अधिक रंगों को पहचानने में असमर्थ होते हैं| लेंस और पर्दे के बीच की जगह में एक द्रव पदार्थ पाया जाता है| जो जैलीनुमा होता है, इसे बिट्रस ह्यूमर कहते है| इन्हें इतनी कसरत करनी पड़ती है, कि उतने में पैर की मांसपेशिया 50 मील की दूरी तय करें| इसमें 6 मांसपेशिया पाई जाती है, जो कि निम्न प्रकार है—
1. सुपीरियर रेक्ट्स (Superior Rectus):- आँख को ऊपर की ओर घुमाना|
2. इनफीरियर रेक्ट्स (Infirior
Rectus):- आँख को नीचे की ओर घुमाना|
3. मीडियल रेक्ट्स (Medial Rectus):- आँख को नाक की तरफ घुमाना|
4. लेटरल रेक्ट्स (Leteral Rectus):-
आँख को बाहर तथा कान की तरफ घुमाना|
5. सुपीरियर आबलिक (Superior Oblic):-
आँख को बाहर तथा नीचे घुमाना|
6. इनफीरियर आबलिक (Infirior Oblic):- आँख को ऊपर तथा बाहर की तरफ घुमाना|
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