Paper Code 108) U. 1.2. Aims and objectives of general education and special education with reference to pre-primary and elementary level(Primary and uppper primary)
1.2. Aims and objectives of
general education and special education with reference to pre-primary and
elementary level(Primary and uppper primary)
सामान्य एवं विशेष शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के उद्देश्यों पर बिना विचार किए हुए शिक्षा प्रकिया का संचालन सुचारु रुप से नही किया जा सकता| संसार मे जितनी क्रियाएं होती है वे किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है जब हम क्रिया का प्रारम्भ करते हैं तो उस क्रिया का किसी न किसी स्तर पर अंत भी होता है| किसी क्रिया के अंत की पूर्व दृष्टि ही एक प्रकार से उस क्रिया का उद्देश्य है| यह एक नैतिक प्रक्रिया है और किसी दिशा की ओर उन्मुख होती है| दिशा का निर्धारण ही लक्ष्य का निर्धारण है| अतः शिक्षा के उद्देश्यों का निश्चय हमारे लिए आवश्यक है|
सामान्य शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा व्यक्ति को अनवरत रूप से सामंजस्य पूर्ण तथा समृद्ध बनानें की चेष्टा में रत
किया
है
किन्तु
समृधि
को
कसौटी
व्यक्ति
समाज
तथा
काल
को
विशेषताओं
और
दृष्टिकोणों
पर
निर्भर
रहती
है|
इसी
प्रकार
यद्यपि
मनुष्य
के
विकास
समृधि
आदि
को
शिक्षा
के
उद्देश्य
के
रूप
में
सभी
उचित
मानते
हैं|
शिक्षा
के
सामान्य
उद्देश्य
निम्नलिखित
हैं—
1. जीवकोपार्जन
का उद्देश्य
जीवन
निर्वाह
के
लिए
धन
की
आवश्यकता
होती
है
और
शिक्षा
के
आभाव
में
धन
कमाना
असम्भव
सा
प्रतीत
होता
है
इसलिए
शिक्षा
का
उद्देश्य
जीवकोपार्जन
माना
गया
है|
2. चरित्र
निर्माण का
उद्देश्य
शिक्षा
विचारकों
में
चरित्र
निर्माण
को
शिक्षा
का
एक
सामान्य
एवं
सार्वभौमिक
उद्देश्य
स्वीकार
किया
है|
इस
प्रकार
चरित्र
विकास
उद्देश्य
का
अर्थ
है—न
केवल
उत्तम
चरित्र
का
वरन
उत्तम
नैतिकता
का
विकास
करना|
3. शारीरिक
विकास का
उद्देश्य
सामान्य
रूप
से
प्रायः
सभी
देशों
और
कालों
ने शारीरिक
विकास
को
शिक्षा
का
महत्वपूर्ण
उद्देश्य
माना
है
क्योंकि
ऐसा
माना
गया
है
कि
‘स्वस्थ व्यक्ति
में
शक्ति
और
उत्साह
होता
है
जो
उसे
अपने
जीवन
की
आवश्कताओं
को
पूरा
करने
में
सहायता
देते
हैं|
4. सांस्कृतिक
विकास का
उद्देश्य
मनुष्य
में
जन्म
के
समय
पश्विक
प्रावृत्तियां
होती
है
सस्कृति
ही
उसे
पशु
से
मानव
बनाती
है
अतः
शिक्षा
के
सांस्कृतिक
उद्देश्य
का
अर्थ
है
सस्कृति
का
प्रचार
अर्थात
व्यक्ति
को
सभ्य
व
शिष्ट
बनाना|
5. ज्ञान
प्राप्ति का
उद्देश्य
ज्ञान
मनुष्य
की
प्रगति
का
आधार
है|
ज्ञान
के
अभाव
में
मनुष्य
के
व्यक्तित्व
का
विकास
नही
होता
है
अतः
शिक्षा
के
द्वारा
प्राप्त
ज्ञान
मनुष्य
को
अपने
विचारों
और
भावनाओं
को
अनुशासन
में
रखने
और
संगठित
करने
में
सहायता
देता
है|
6. नागरिकता
का उद्देश्य
नागरिक
के
रूप
में
प्रत्येक
व्यक्ति
के
कुछ
अधिकार
व
कर्त्तव्य
होते
हैं|
अतः
नागरिकों
को
अपने
अधिकारों
व
कर्त्तव्यों
से
परिचित
कराना
उसमें
विशेष
गुणों
का
विकास
करना
और
उसे
राजनितिक,
सामाजिक
और
आर्थिक
जीवन
से
सम्बन्ध
रखने
वाली
बातों
की
जानकरी
कराना,
नागरिकता
की
शिक्षा
के
अन्तर्गत
आते
हैं|
7. शिक्षा
का सामाजिक
उद्देश्य
शिक्षा
के
सामाजिक
उद्देश्य
को
शिक्षा
का
सामाजिक
और
नागरिकता
का
उद्देश्य
कहा
जा
सकता
है|
इस
उद्देश्य
के
अनुसार
समाज
का
स्थान
व्यक्ति
के
स्थान
से
ऊँचा
है
व्यक्ति
को
अपने
हित
के
साथ-साथ
समाज
के
हित
का
भी
ध्यान
रखना
चाहिएउसे
आवश्यकता
पड़ने
पर
हर
प्रकार
का
बलिदान
देने
के
लिए
तैयार
रहना
चाहिए|
विशेष
शिक्षा का
उद्देश्य
विशेष
शिक्षा का
अर्थ एवं
परिभाषा
ऐसे
बालक
जो
शारीरिक,
मानसिक,
सामाजिक
अथवा
संवेगात्मक
दृष्टि
से
सामान्य
बालकों
से
इतना
भिन्न
होते
हैं
कि
सामान्य
शैक्षिक
क्रियाओं
से
लाभान्वित
नहीं
होते
और
उनकी
इसी
भिन्नता
को
ध्यान
में
रखकर
उनके
लिए
शिक्षा
की
व्यवस्था
की
जाती
है
उसे
विशिष्ट
शिक्षा
के
नाम
से
जाना
जाता
है,
एवं
ऐसे
बालकों
को
विशेष
बालक,
अपवादी
बालक
अथवा
असाधारण
बालक
भी
कहा
जाता
है|
क्रो
एवं क्रो
के अनुसार
“विशिष्ट
शब्द
किसी
विशेष
लक्षण
अथवा
किसी
ऐसे
व्यक्ति
के
लिए
प्रयुक्त
किया
जाता
है
जो
विशेष
लक्षणों
से
युक्त
हो,
जिसके
कारण
व्यक्ति
अपने
साथियों
का
विशेष
ध्यान
अपनी
ओर
आकर्षित
करता
है|”
Hallahan & Kauffman के
अनुसार
“विशिष्ट
शिक्षा
से
तात्पर्य
है
कि
विशिष्ट
प्रकार
से
निर्मित
अनुदेशन
जो
एक
अपवादी
बालकों
को
विशिष्ट
आवश्कताओं
की
पूर्ति
करता
है”
विशिष्ट
बालकों
की
भिन्न
आवश्यकताओं
को
ध्यान
में
रखते
हुए
विशेष
शिक्षा
के
निम्नलिखित
उद्देश्य
होने
चाहिए—
1. समायोजन
में सहायता
विशेष
शिक्षा
का
प्रमुख
उद्देश्य
बालक
को
विद्यालय,
परिवार,
पास-पड़ोस
तथा
विभिन्न
सामाजिक
परिस्थियों
में
स्वयं
को
समायोजित
करने
योग्य
होना
चाहिए|
2. दिन-प्रतिदिन
की समस्याएं
हल करने
योग्य बनाना
विशेष
शिक्षा
का
दूसरा
प्रमुख
उद्देश्य
है
कि
बालक
को
इस
योग्य
बनाना
कि
वह
अपने
दिन-प्रतिदिन
के
कार्यों
को
स्वयं
कर
सके,
उसे
दूसरे
पर
निर्भर
न
रहना
पड़े|
3. योग्यताओं
का अधिकतम
विकास
विशिष्ट
बालक
चाहे
वह
विशिष्ट
प्रतिभा
से
सम्पन्न
हो
अथवा
वह
शारीरिक,
मानसिक
विकलांग
उसे
इस
प्रकार
को
विशेष
शिक्षा
दी
जाए
कि
उसके
गुणों
का
अधिकतम
विकास
हो
सकें|
4. आर्थिक
स्वतन्त्रता के
योग्य बनाना
विशेष
शिक्षा
के
अन्तर्गत
विशिष्ट
बालकों
को
न
केवल
व्यवसायिक
निर्देशन
दिया
जाता
है
बल्कि
इन्हें
आर्थिक
क्रियाओं
का
प्रशिक्षण
तथा
हस्त
कलाओं
की
शिक्षा
दी
जाती
हैं|
जिन्हें
यह
भविष्य
में
व्यवसाय
के
रूप
में
अपना
सकते
हैं
तथा
आर्थिक
रूप
से
आत्मनिर्भर
हो
सकते
हैं|
5. अभिभावकों,
शिक्षकों एवं
विद्यालय प्रशासन
को सहायता
देना
विशेष
शिक्षा
विशिष्ट बालकों से
जुड़े
सभी
व्यक्तियों
चाहे
वे
अभिभावक
हो,
शिक्षक
को
अथवा
विद्यालय
प्रशासन
को
उस
बालक
के
प्रति
अपने
उत्तरदायित्वों
को
निभाने
में
सहायता
प्रदान
करती
करती
है|
विशिष्ट
बालक
के
विकास
के
लिए
चलाये
गए
किसी
भी
कार्यक्रम
में
इन
तीनों
की
सहभागिता
आवश्यक
है|
6. समाज
के दृष्टिकोणों
में परिवर्तन
कुछ
विशिष्ट
बालकों
के
प्रति
समाज
के
दृष्टिकोण
उपयुक्त
नहीं
होता
उदाहरण
के
लिए
‘शारीरिक विकलांगों
अथवा
मानसिक
मंद
बच्चों
के
प्रति
या
बाल
अपराधियों
के
प्रति|’
विशेष
शिक्षा
का
उद्देश्य
एक
यह
भी
है
कि
वह
समाज
के
इस
दृष्टिकोण
में
परिवर्तन
लाए,
समाज
का
सकारात्मक
दृष्टिकोण,
शारीरिक
तथा
मानसिकों
के
आत्म
विश्वास
में
वृद्धि
करेगा
तथा
उन्हें
समायोजित
होने
में
सहायक
होगा|
Aim’s
& Objectives of Pre-Primary & Primary Education
पूर्व
प्राथमिक एवं
प्राथमिक शिक्षा
के उद्देश्य
मनुष्य
एक
क्रियाशील
प्राणी
है।
उसकी
क्रियाएं
निरुद्देश्य
नहीं
होती
हैं,
चाहें
वह
सामान्य
बालक
हो
या
विशेष।
मानव
की
समस्त
क्रियाओं
की
पृष्टभूमि
में
कोई
लक्ष्य
या
उद्देश्य
अवश्य
होता
है|
जो
व्यक्ति
को
क्रिया
करने
की
प्रेरणा
देता
है
तथा
उसका
मार्ग
दर्शन
भी
करता
है।
सामान्यतः
कोई
भी
बालक
या
बालिका
लगभग
5 या 6 वर्ष
की
आयु
का
हो
जाने
पर
ही
ज्ञानार्जन
योग्य
बन
पाता
है।
अतः
विद्यालय
में
शिक्षा
ग्रहण
करने
के
लिये
जो
बालक
आते
हैं
उनमें
सामान्य
बालकों
के
अतिरिक्त
कुछ
बालकों
की
संख्या
ऐसी
भी
होती
है
जो
शारीरिक,
मानसिक
और
व्यक्तिगत
भेद
की
दृष्टि
से
असामान्य
होते
हैं।
अतः
शिक्षा
का
उद्देश्य
दोनों
प्रकार
के
बालकों
के
लिए
ध्यान
में
रखकर
निर्धारित
किया
जाता
है।
पूर्व
प्राथमिक शिक्षा
का अर्थ
पूर्व
प्राथमिक
शब्द
दो
शब्दों
से
मिलकर
बना
है-पूर्व
तथा
प्राथमिक
अतः
पूर्व
प्राथमिक
शिक्षा
का
शाब्दिक
अभिप्राय
प्राथमिक
शिक्षा
से
पूर्व
अर्थात्
पहले
की
शिक्षा
से
दूसरे
शब्द
में
बालक
प्राथमिक
स्कूल
की
कक्षा
में
प्रवेश
से
पूर्व
जो
भी
शिक्षा
प्राप्त
करता
हैं
उसे
पूर्व
प्राथमिक
शिक्षा
कहते
हैं|
पूर्व
प्रथामिक
शिक्षा
माता
के
गर्भ
धारण
के
समय
प्रारम्भ
होती
है
तथा
बालक
की
आयु
5 या 6 वर्ष
होने
तक
चलती
है|
पूर्व
प्राथमिक
शिक्षा
को
दो
भागों
में
बाटाँ
जा
सकता
है—
1. जन्म
से
पूर्व
शिक्षा
इसके
अन्तर्गत
माता
के
गर्भ
में
स्थिति
बालक
की
देखा-भाल
आती
है|
2. जन्मोतर
शिक्षा
इसके
अन्तर्गत
घर,
परिवार
व
पड़ोस
तथा
पूर्व
प्राथमिक
कक्षा
में
अर्जित
ज्ञान
आता
है|
पूर्व
प्राथमिक शिक्षा
संस्थाओं के
प्रकार
1. Creche (क्रेच)
2. K.G.
(Kindergardon School) फ्रोबेल
3. Montessory
School मारिया मांटेसरी
4. Nussury
School मार्गरेट मैकमिलन
5. Pre-Basic
School महात्मा गाँधी
पूर्व प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य
बालक
प्राथमिक
स्कूल
की
कक्षा
में
प्रवेश
से
पूर्व
जो
भी
शिक्षा
प्राप्त
करता
है,
उसे
पूर्व
प्राथमिक
शिक्षा
कहते
हैं।
पूर्व
प्राथमिक
शिक्षा
माता
के
गर्भधारण
के
साथ
शुरू
होती
है
तथा
बालक
की
आयु
5 या 6 वर्ष
होने
तक
चलती
है।
पूर्व
प्राथमिक शिक्षा
के उद्देश्य
निम्नलिखित है—
1. बालकों
को
स्वास्थ्य
वर्धक
वातावरण
जैसे-खुली
जगह,
शुद्ध
हवा,
प्रकाश
आदि
उपलब्ध
कराना
जिससे
उनका
शारीरिक
अंग
संचालन
व
पेशीय
समन्वय
का
विकास
हो
सके|
2. बालकों
में
स्वास्थ्य
सम्बन्धी
अच्छी
आदतें,
जैसे-स्नान
करना,
साफ
रहना,
उचित
ढंग
से
भोजन
करना
आदि
विकसित
करना।
3. बालकों
में
वांछिनीय
सामाजिक
दृष्टिकोण
तथा
आदतें
विकसित
करना|
जिससे
वे
समूह
क्रियाओं
में
भाग
ले
सकें।
4. समाज
में
व्याप्त
विशेष
बालकों
के
प्रति
नकारात्मक
दृष्टिकोण
को
सकारात्मक
दृष्टिकोण
में
परिवर्तित
करना।
5. बालकों
में
अपने
वातावरण
के
सम्बन्ध
में
जिज्ञासा
उत्पन्न
करने
की
प्रवृत्ति
विकसित
करना।
6. बालकों
में
सम्वेगात्मक
परिपक्वता
का
विकास
करना,
जिससे
वह
अपने
विचारों
व
सम्वेगों
को
समझने,
स्वीकार
करने,
नियंत्रित
करने
तथा
प्रदर्शित
करने
योग्य
बन
सकें।
7. विशेष
बालकों
को
विभिन्न
सामाजिक
परिस्थितियों
में
स्वयं
को
समायोजित
करने
योग्य
बनाना।
8. बालकों
में
अच्छी
वस्तुओं
व
व्यक्तियों
की
प्रशंसा
करने
की
आदत
विकसित
करना।
9. बालक
में
आत्म
अभिरुचि
क्षमता
विकसित
करना|
प्राथमिक शिक्षा
Primary
education
प्राथमिक
शिक्षा
का
व्यक्ति
के
जीवन
में
विशेष
महत्व
है।
मनोवैज्ञानिक
सिद्धान्तों
से
ज्ञात
होता
है,
कि
5 या 6 वर्ष
पूरे
कर
लेने
पर
बालक
की
वाक्
शक्ति,
स्नायुविक
विकास,
ध्यान
केन्द्रित
करने
तथा
सम्बन्धों
को
समझने
की
क्षमता
का
विकास
हो
जाता
है।
अतः
दूसरे
शब्दों
में
औपचारिक
शिक्षा
व्यवस्था
के
प्रथम
स्तर
को
प्राथमिक
शिक्षा
स्तर
कहा
जाता
है।
शिक्षा
आयोग
(सन 1964-1966) ने
कक्षा
1 से 5 तक
की
शिक्षा
को
निम्न
प्राथमिक
शिक्षा
तथा
कक्षा
6 से 8 तक की
शिक्षा
को
उच्च
प्राथमिक
शिक्षा
कहा
है।
अतः
निम्न
प्राथमिक
शिक्षा
6-11 वर्ष तक
के
आयु
वर्ग
के
बालकों
के
लिए
होती
है,
जबकि
उच्च
प्राथमिक
शिक्षा
प्रायः
11-14 आयु वर्ग
के
बालकों
के
लिये
होती
है।
अनिवार्य
तथा निःशुल्क
प्राथमिक शिक्षा
मानवाधिकारों
को
सुनिश्चित
करने
एवं
प्रजातन्त्र
को
सफलता
पूर्वक
व
प्रभावशाली
ढंग
से
चलाने
के
लिए
यह
आवश्यक
है
कि
सभी
नागरिक
कुछ
न
कुछ
शिक्षा
अवश्य
प्राप्त
करें|
स्वतन्त्र
भारत
के
संविधान
की
धारा
45 में प्राथमिक
शिक्षा
को
अनिवार्य
व
निःशुल्क
बनाने
का
संकल्प
लिया
इसमें
कहा
गया
था
कि—
“संविधान
लागू
होने
के
10 वर्ष के
अन्दर
राज्य
अपने
क्षेत्र
के
सभी
बालकों
को
14 वर्ष की
आयु
होने
तक
निःशुल्क
व
अनिवार्य
शिक्षा
प्रदान
करने
का
प्रयास
करेगा|”
इस
संबैधानिक
उत्तरदायित्व
को
पूरा
करने
के
लिए
अनेक
राज्यों
में
प्राथमिक
शिक्षा
अधिनियम
बनाए
गए|
जिसमें
प्राथमिक
शिक्षा
को
अनिवार्य
व
निःशुल्क
बनाने
के
कार्यक्रम
व
नीतियाँ
निर्धारित
की
गयी
है|
प्राथमिक
शिक्षा के
उद्देश्य
प्राथमिक
शिक्षा
बालकों
को
अपने
वातावरण
के
साथ
अनुकूलन
करने
योग्य
बनाती
है,
उनका
शारीरिक
व
मानसिक
विकास
करती
है,
भाषा,
कला
व
संगीत
आदि
के
द्वारा
आत्माभिव्यक्ति
की
क्षमता
विकसित
करती
है,
आत्मनिर्भर
बनाती
है,
उनमें
नागरिकता
के
गुण
विकसित
करती
है
तथा
उनमें
नैतिकता
की
भावना
विकसित
करती
है।
राष्ट्रीय
शैक्षिक
अनुसन्धान
प्रशिक्षण
परिषद
(NCERT) के द्वारा
सन
1957 में तैयार
किए
गए
दस्तावेज (The Curricular for the 10
year School) ने प्राथमिक
शिक्षा
के
निम्नलिखित
उद्देश्य
बताए
हैं-
1. किसी
भी
व्यक्ति
से
वार्तालाप
एवं
पारस्परिक
सम्पर्क
के
लिये
प्रथम
भाषा, (मातृभाषा) का सम्पूर्ण
ज्ञान
कौशल
प्रदान
करना।
2. व्यवहारिक
समस्याओं
के
समाधान
के
लिये
जोड़,
घटाना,
गुणा
व
भाग
की
आधारभूत
गणितीय
संक्रियाओं
की
योग्यता
प्रदान
करना।
3. राष्ट्रीय
प्रतीकों,
जैसे-राष्ट्र
ध्वज,
राष्ट्र
गान
तथा
प्रजातान्त्रिक
विधियों
व
संस्थाओं
के
प्रति
आदर
भाव
उत्पन्न
करना।
4. भारत
की
मिली-जुली
संस्कृति
से
परिचय
कराना
तथा
अस्पृश्यता,
जातिवाद
व
साम्प्रदायिकता
का
विरोध
करना
सिखाना।
5. सफाई
तथा
स्वस्थ
जीवन
जीने
की
आदतें
विकसित
करना।
6. मानव
श्रम
के
प्रति
स्वस्थ
दृष्टिकोण
विकसित
करना।
7. बालकों
में
भाई-चारे
की
भावना
का
विकास
करना।
8. सभी
धर्म
स्थलों
के
प्रति
आदर्श
भावना
का
निर्माण
करना।
9. बालकों
में
कर्तव्य
निष्ठा
के
भावों
का
विकास
करना।
10. विशेष
बालकों
की
विशिष्ट
प्रतिभा
एवं
उनके
गुणों
का
अधिकतम
विकास
करना|
11. आदर
तथा
स्नेह
जागृत
करना।
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