भाषा अधिगम प्रक्रिया के चरण या स्तर
भाषा अर्जन में अधिगम प्रक्रिया का विशेष महत्व है भाषा अधिगम की प्रक्रिया औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूपों में चलती है विद्यालय में प्रवेश लेने पर बालक की विधिवत् शिक्षा प्रारंभ हो जाती है| यहां वह भाषा सीखने और सिखाने के लिए अनेक आधारभूत सिद्धांतों और सूत्रों का प्रयोग करते हुए भाषा सीखता है| भाषा अधिगम के लिए अनेक युक्तियां प्रयोग में लाई जाती हैं जो इस प्रकार है—
1. अभ्यानुकूलन
बालक प्रारंभिक भाषा अभ्यानुकूलन के द्वारा ही सीखता है क्योंकि हर क्रिया के लिए एक उत्तेजना की आवश्यकता होती है और फिर उसके कारण अनुक्रिया होती है|
2. अनुकरण
अनुकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो बचपन से वृद्धावस्था तक चलती रहती है| बालक बचपन से सभी कार्य अनुकरण द्वारा ही सीखता है| भाषा अर्जन ही बालक बड़ों का अनुकरण करके करता है| अनुकरण से बालक को कुछ प्राप्त करने का संतोष मिलता है साथ ही इसके फलस्वरूप उसे प्रशंसा एवं प्रोत्साहन भी मिलता है|
3. प्रयत्न एवं त्रुटि
अनुकरण प्रक्रिया के दौरान बालक देखता हैं एवं उसका अनुकरण करता है प्रारंभ के कुछ वर्षों में अनुकरण में वह कुछ असफल भी रहता है फिर भी वह बार-बार प्रयत्न करता है और इस प्रकार प्रयत्न करते हुए अंततः सफलता भी प्राप्त करता है यही प्रवृत्ति भाषा अधिगम और भाषा प्रयोग में भी देखी जा सकती है|
4. अंतर्दृष्टि
हर बालक में अपनी सूझ होती है उसके पास एक जन्मजात भाषा अर्जन की युक्ति भी होती है जिसके द्वारा वह भाषा की मूलभूत संरचनाओं को ग्रहण करता है और अपनी अंतर्दृष्टि व सूझ-बूझ के द्वारा इसका प्रयोग करता है इसी युक्ति के कारण वह गलत और सही वाक्यों में अंतर कर पाता है तथा यथासंभव अशुद्ध प्रयोगों से बचता है| बालक अपनी इस शक्ति का प्रयोग भाषा अर्जन के हर स्तर पर करता है|
बालक का भाषायी विकास
बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसकी भाषा का भी विकास होता है ये विकास क्रमिक तथा प्राकृतिक दोनों प्रकार से होता है बालक रोने तथा किल कारने से प्रारंभ कर शब्द, लघु, वाक्य, पूर्ण वाक्य प्रयोग से बढ़ता हुआ व्याकरणिक शुद्धता के स्तर में पहुंचने तक अपनी आयु के चार वर्ष पार कर जाता है| बालक के भाषायी विकास के ये सभी स्तर अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं शिशु के भाषायी विकास का अध्ययन मुख्यतः दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है|
1. आयु
2. भाषाई घटक के आधार पर|
भाषायी घटक के आधार पर
भाषायी घटकों में भाषा की विविध व्यवस्थाओं को आधार माना जाता है| जैसे—ध्वनि, शब्द, अर्थ और व्याकरणिक व्यवस्था आदि|
आयु की दृष्टि से
बालक का भाषायी विकास आयु की दृष्टि से निम्नलिखित चार चरणों से गुजरता है—
1. प्रथम शब्द (0-10 महीने तक)
2. द्वि-शब्दीक वाक्य (1.5 से 2 वर्ष)
3. तीन शब्दीक वाक्य (2.5 से 3 वर्ष)
4. सरल छोटे वाक्य (4 वर्ष)
(बालक के भाषा विकास की गति परिस्थिति पर्यावरण आदि के कारण बदलती रहती है|)
भाषायी घटकों की दृष्टि से
बच्चे द्वारा उच्चारित प्रथम शब्द भाषा विकास की क्षमता के प्रारंभ का सूचक है 9 से 12 महीने की आयु में अधिकांश बच्चे एक शब्द के प्रयोग की कुशलता अर्जित कर लेते हैं इनसे बालक विभिन्न क्रियाओं तथा भावों की अभिव्यक्ति करता है बड़ों के भाषा अनुकरण से वह भाषा की ध्वनियों से परिचित हो जाता है दो होठों से बोली जाने वाली ध्वनियों (द्वयोष्ठी) से युक्त दो शब्दों का प्रयोग जैसे—बाबा, मामा आदि का प्रयोग करता है इसके साथ ही वह छोटे-छोटे किंतु सामान्य शब्दों का प्रयोग भी करता है|
1 वर्ष के आस-पास वह इतने ही शब्दों का प्रयोग कर पाता है दो वर्ष का होते-होते बच्चा शब्दों को मिलाकर वाक्य निर्माण करना सीख जाता है व्याकरण का प्रारंभ भी इसी अवस्था से माना जाता है 3 वर्ष के बालक में वाक्य निर्माण की प्रक्रिया अधिक सुचारू हो जाती है|
4 या 5 वर्ष की आयु तक उसमें भाषा प्रयोग की क्षमता आ चुकी होती है तथा वह मिश्रित व संयुक्त वाक्यों का प्रयोग करना भी सीख लेता है| किंतु हर आयु में बालक के वाक्यों के प्रकार और लंबाई में व्यक्तिगत तथा अवसरानुकूल विभिन्नता देखी जाती है सामान्यतः 3 वर्ष तक शिशु बहुत व्याकरणिक त्रुटियां करता है उसकी प्रमुख कठिनाई सर्वनामों के प्रयोग एवं क्रिया के कालों को चुनने में होती है एकवचन और बहुवचन का चयन करने में भी बालकों को समस्या होती है|
एक शिशु अपने भाषा विकास के क्रम में निम्न चार प्रकार के वाक्यों का प्रयोग करता है—
1. निर्देशक
2. निषेधात्मक या नकारात्मक वाक्य
3. प्रश्नवाचक वाक्य
4. आज्ञार्थक वाक्य
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