त्रिभाषा सूत्र
भारत एक ऐसा देश है जिसमें अनेक भाषाएं बोली जाती हैं।
यहां मातृ भाषा के पद पर अनेक भाषाएं, प्रतिष्ठित हैं जो भिन्न भिन्न राज्यों में शिक्षा का माध्यम है। किंतु हिंदी को उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान हिंदी तथा हरियाणा में मातृभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। इन प्रदेशों में विद्यालय पाठ्यक्रम में हिंदी का अध्यापन होता है जब कि हम यह भी जानते हैं कि भारतीय संविधान में हिंदी को ही भारत की राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है। उपरोक्त हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी मातृ भाषा एवं राष्ट्र भाषा दोनों ही रूपों में पढ़ाई जाती है किंतु अहिंदी भाषी प्रदेशों की स्थिति इससे अलग है वहां हिंदी केवल राज्य भाषा है। उनकी मातृ भाषा नहीं। अतः इन प्रदेशों में मातृ भाषा के साथ हिंदी अनिवार्य रूप से राष्ट्र भाषा होने के कारण अन्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है।
वर्तमान में हर स्तर पर अंग्रेजी भाषा का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है और यह भाषा विश्व के अधिकांश देशों में प्रचलित भी है। दूसरे देशों के साथ विचार विनिमय एवं व्यापार आदि करने के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता थी जो उपरोक्त सभी मानदंडों को पूरा करती हो और यह सभी गुण अंग्रेजी भाषा में विद्यमान पाये गये|
अतः भारत में किस भाषा का प्रतिपादन त्रिभाषा सूत्र का प्रतिपादन किया गया जिसके अंतर्गत ये तीन भाषाएं क्रमशः अपनी उपयोगिता, महत्व एवं प्रयोग के आधार पर निर्धारित की गई हैं—
1. हिंदी—राष्ट्र भाषा के रूप में
2. अंग्रेजी—द्वितीय राज भाषा के रूप में
3. मातृ भाषा या राज्य भाषा
प्रत्येक प्रदेश की अपनी
एक भाषा होती है जिसे सामान्यतः वहां की मातृ भाषा कहा जाता है जिसे उस राज्य की प्राथमिक
शिक्षा का माध्यम भी बनाया जाता है| त्रिभाषा सूत्र में मातृ भाषा को शामिल करने का
सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण यही थाl साथ ही मातृ भाषा से किसी राज्य विशेष की पहचान भी होती है।
अतः उसे बनाए रखने और संपूर्ण देश से उस राज्य का संबंध स्थापित करने के लिए यह अनिवार्य
एवं उपयोगी प्रयास है। इसके अतिरिक्त विभिन्न कारणों से भारत में अंग्रेजी को भी एक
विशिष्ट स्थान प्राप्त है| क्योंकि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा किसी भी अन्य भाषा की
अपेक्षा अधिक प्रयोग में की जाती है यह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों
पर उपयोगी है अतः संविधान के अनुसार अंग्रेजी को सहराज्य भाषा का पद प्रदान किया गया,
वहीं दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में संप्रेषण एवं ज्ञान विज्ञान का माध्यम भी
अंग्रेजी होना इसके महत्व को और अधिक बढ़ाता है|
उपरोक्त दोनों भाषाओं
के साथ राज भाषा हिंदी को शामिल करना आवश्यक है क्योंकि किसी देश की राष्ट्र भाषा ही
उस देश के वासियों की वासियों में आपसी प्रेम, एकता, सौहार्द विश्वास का माध्यम बनती
है और उन्हें एक सूत्र में बांधे रखने का अति महत्वपूर्ण कार्य करती है।
हिंदी, अंग्रेजी,
और मातृ भाषा के सहयोग से बने त्रिभाषा सूत्र के संदर्भ में शिक्षा आयोग (1964-1966) ने
एक संशोधित त्रिभाषा सूत्र प्रस्तुत किया जो इस प्रकार है—
1. मातृ भाषाया क्षेत्रीय भाषा।
2. केंद्र की राज्य भाषा हिंदी या सह राज भाषाअंग्रेजी|
3. एक आधुनिक भारतीय भाषा या विदेशी भाषा। जिसे नंबर एक या दो
में न रखा गया हो तथा जो शिक्षा के माध्यम से भिन्न हो|
यह संशोधन मुख्यतः हिंदी
भाषी प्रदेशों के लिए किया गया था। इस प्रकार हिंदी भाषी प्रदेशों के विद्यालय पाठ्यक्रमों
में त्रिभाषा का रूप इस प्रकार है
1. प्रथम भाष—हिंदी
2. द्वितीय भाषा—अंग्रेजी
3. तृतीय भाषा—संस्कृत या कोई अन्य राष्ट्र भाषा।
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