1.3.
Process of seeing
देखने की प्रक्रिया
हमारी पलकें कैमरे की सटर की तरह कार्य करती है। जब पलकें खुली होती है तब हमारे सामने रखी वस्तु से निकली किरणें कार्निया पर अपरिवर्तित होकर एक़ुअस ह्यूमर Equas Humour तब लेंस ब्यूट्रेस ह्यूमर से होती हुई रेटिना पर गिरती है। रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिम्ब उल्टा बनता है। प्रतिबिम्ब की सूचनाएं ऑप्टिकल नर्व के द्वारा रेटिना की संवेदी कोशिकाओं से होकर मस्तिष्क में पहुँचती है। मस्तिष्क अनुभव के आधार पर उसका ज्ञान सीधे रूप से प्राप्त कर लेता हैं।
नेत्र की समंजन क्षमता
(Accomodation
of Eye)
जब नेत्र अनन्त पर स्थित किसी वस्तु को देखती है तो नेत्र पर गिरने वाली समांतर किरणें नेत्र लेंस द्वारा रेटिना पर पड़ती है और नेत्र को वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। इस स्थिति में सिलियरी मांसपेशियां ढीली रहती हैं। तथा नेत्र लेंस की फोकस दूरी सबसे अधिक होती है। जब नेत्र के समीप किसी वस्तु को देखते हैं तो मांसपेशियां लेंस के पृष्ठों की वक्रता त्रिज्या को कम कर देती है इससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी भी कम हो जाती है और वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब पुन: रेटिना पर बन जाता है। नेत्र की इस फोकस दूरी को कम करने की क्षमता को नेत्र की समंजन क्षमता कहते है।
अथवा
नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण नेत्र लेन्स की फोकस दूरी में
परिवर्तन कर नजदीक व दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखा
जा सकता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।
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